कृष्णजन्माष्टमी के बारे में जाने। जन्माष्टमी में मोहरात्रि किसे कहते है?

कृष्ण जन्माष्टमी के बारे में जाने। जन्माष्टमी में मोहरात्रि  किसे कहते है?

कृष्णजन्माष्टमी भगवान् श्री कृष्ण के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार है। जो हिन्दू धर्म में काफी प्रचलित है।  


कृष्णजन्माष्टमी का मतलब भगवन श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी के  था जिसके कारण इन के जन्म  कृष्णजन्माष्टमी के नाम से  जाना जाता है। यह जन्म दिन एक खाश त्यौहार के रूप में मनाया जाता है क्युकी या जन्म किसी आम इंसान का जन्म दिन नहीं हैं बल्कि इस दिन स्वंय भगवान का जन्म हुआ था इस धरती पर , जिससे यह पूरी सृस्टि ही आनंदमय हो गयी थी। और हो भी क्यों नहीं जिसमे पूरी सृस्टि ही समाहित हो ,जो पुरे संसार का कल्याण कर सकता है। जिसका आदि हो न ही अंत। जिसमे लाखों सूर्यों का तेज समाया हो। जिसके दर्शन मात्र से ही जिव का जन्मो जन्मो का पाप नष्ट हो जाता है ,और अन्नत काल तक सुख देने वाले भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिन कोई साधारण कैसे हो सकता है। जन्माष्टमी यह खाश कर हिन्दुओ का महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है पर अब पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा क्योंकि भारतीय जहा भी रहते हैं  फेस्टिवल नहीं भूलते सेलिब्रेट जरूर करते हैं।     भगवान श्री कृष्ण  का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आधी रात में जन्म हुआ था।  श्री कृष्ण ने अपने जीवन  में कई भूमिकाये निभाए ,कई उदेश्य से भगवन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। जैसे  ये बचपन में ही कई लीलाएं दिखा चुके थे ,जैसे जन्म होते ही पिता की हथकडिया खुल जाना ,जेल का दरवाजा अपने आप खुल जाना ,श्री कृष्ण का जन्म जेल में ही हुई थी। इसके पीछे भी कई कहानी जुडी हुई है। श्री कृष्ण अपने माता पिता  के आठवें पुत्र थे  इनके पहले होने वाले सभी पुत्रों को कृष्ण के मामा के द्वारा  मार दिया जाता था ,श्री कृष्ण के मामा का नाम कंश था जो बहुत ही निर्दयी राक्षस था ,जिसके कारण उसका पूरा राज्य डरा हुआ रहता था ,बहुत ही क्रूर शासक था। उसे पता था की उसे उसी का भंजा उसे मारेगा कारण अपने सभी भांजा को मरते रहा ,पर कहते है जो ईश्वर ने लिखा है वही होता है। क्योंकि उसके पास हजार तरीके हैं। और सत्य होता है इसी के कारण भगवान् श्री कृष्ण का अवतार होना जरुरी हो जाता है।

 श्री कृष्ण ने महाभारत में मुख्य  भूमिका निभाया जिसमे अर्जुन को द्वारा सृष्टि को भगवदगीता का उपदेश दिया ,जिसमे मानव जीवन का कल्याणकारी तथ्य से भरा हुआ है।

जन्माष्टमी में व्रत का  विधान

 श्री कृष्ण के जन्मदिन पर  मथुरा में इनके घर को खूब सजाया जाता है ,जहा दूर दूर से लोग देखने आते हैं। मंदिरों को खूब सजाया जाता है। इस दिन बच्चे बूढ़े सभी इनकी झांकिया देखने को निकलते हैं। भगवान् को झूला झुलाया जाता है। भगवत कथा का आयोजन होता है साथ ही रासलीला का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन लोग पूजन करते है और श्री कृष्ण का प्रसाद पाते है साथ ही सुख शांति का आशीर्वाद लेते हैं। जय कन्हैया लाल की मदन गोपाल की ,यह जयकारा बच्चों में काफी प्रसिद्ध है , इस दिन लोग कन्हैया जी की मूर्तियां खरीद कर अपने अपने घरो में बैठाते हैं।

जन्माष्टमी के दिन कई लोग व्रत रखते है ,जिससे उनके घर धन धान्य से भरा रहता है। इस दिन लोग अपने आँगन की पुराने तुलसी के पौधे को हटा कर नए तुलसी के पौधे को लगातें है जो पुरे साल भर तक रहती है। 


तुलसी की महत्ता 



तुलसी के पौधे को लक्ष्मी माना जाता है,इसलिए घर के आंगन में इसे लगाया जाता जिससे पुरे साल घर में सकारात्मक ऊर्जा घर के लोगो को देती रहती है, जिससे घर में धन धान्य से भरा रहता है। तुलसी के बहुत गुण हैं। ये पौधा अपने आप में ही खाश है ,क्योंकि ये एक औषधिये पौधा है जिससे इसकी महत्ता बढ़ जाती है।

     जन्माष्टमी के दिन को मोहरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस रात्रि को श्री कृष्ण की भक्ति जाग कर करने से जीवन में मोह रूपी माया जाल नष्ट होती है। इसीलिए इस रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। यह जीवन में बस मोह माया का जल ही फैला है जिसमें लोग इतना घुल मिल जाते हैं की सब भूल कर बस अपनी मनोकामना पूरी करने में लग जाते हैं। लोग यही समझते हैं। की बस हमे यही प्राप्त करना ही हमारी जिंदगी की मकसद है। और यही सब में खो कर लोग मानव जीवन का बहुमूल्य समय गवा देते हैं और जन्म मरण के चक्र में पिस्ते रहते है।

मटकी /दही हांड़ी फोड़ प्रतियोगिता


इस दिन दही हांड़ी की प्रतियोगिता की जाती है जिसमे छोटे छोटे बच्चे भाग लेते हैं ,बच्चे बाल गोविन्द बनते है और हांड़ी या मटकी को कुछ उचाई पर रस्सी के सहारे बांध दिया जाता है और निचे कुछ बालू फैला दिया जाता है की अगर कभी बच्चे गिरे तो चोट न आये। अब बच्चे मिल करे एक दूसरे पर चढ़ चढ़ कर सीढ़ीनुमा बनाते है जिसमे जो पहले चढ़ता है और हड़िया को तोड़ता है उस बच्चे को सम्मानित किया जाता है और कुछ इनाम मटकी में भी रखा होता है ये वही पाता है जो उस मटकी तक पहुँच पाता है। बाकि इनाम जो घोषित किया हुआ रहता है वो मटकी तोड़ने के बाद दिया जाता है।    
            

कन्हैया को कहते है माखन चोर 

श्री कृष्ण को कहते है माखन चोर , बचपना दिखाना भगवान भी नहीं छोड़ते हालाँकि वे तो ईश्वर के अवतार थे फिर भी हर भूमिका को इंसान जैसे ही निभाया। वे सब जानते थे की मैं ही ईश्वर हूँ  फिर भी माखन चोरी कर के खाये अपने दोस्तों को खिलाये और माँ से भी छुपाया फिर भी माँ को पता चल जाता। माँ को अपनी माया से धोखा देने की भी कोशिश की पर सफल नहीं हुए क्योकि ईश्वर के लिए भी माता उतनी ही पूजनीय है जितना दूसरे जीवों के लिए , माता के सामने कोई छल नहीं चल सकता। कन्हैया को माखन खाना बहुत पसंद था ,जब घर में माँ नहीं होती तो माखन मटकी से निकाल लेते अगर खुद से नहीं पहुंच पाते तो अपने ग्वालों को भी बुला    लेते या फिर मटकी को डंडे से फोड़ ही देते। श्री कृष्ण बचपन से ही नटखट थे। काफी मजाकिया  एक से एक लीलाये जिसे देख कर भगवान् भी आकर प्रणाम करते थे।        
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Gautam kr. Suraj

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