बिजली संकट की कहानी, संयंत्रों की निगरानी भगवान भरोसे ही रहता है।


 बिजली संकट की कहानी, संयंत्रों की निगरानी भगवान भरोसे ही रहता है।

 देश में संभावित बिजली संकट को रोकने में बिजली, कोयला और रेल मंत्रालय की सक्रियता चरम पर है। बिजली संयंत्रों को कोयला आपूर्ति सुचारु करने के लिए ना केवल कोल इंडिया लिमिटेड ने उत्पादन बढ़ाया है बल्कि कोयला ढुलाई के लिए रेल मंत्रालय के साथ मिलकर काम भी कर रहा है। इसके बावजूद महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत कुछ दूसरे राज्यों में बिजली की कटौती शुरू हो गई है।

माना जा रहा है कि अगर कोयला आपूर्ति तेजी से नहीं बढ़ाई गई तो मई के पहले पखवाड़े में देश के कई राज्यों में बिजली कटौती की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसे में अगर बिजली मंत्रालय की तरफ से दिए गए आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि बिजली संकट की यह स्थिति पिछले चार-पांच वर्षों के दौरान धीरे-धीरे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की पूरी निगरानी नहीं करने और कोयला उत्पादन में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं होने से बनी है।


वर्ष 2017-18 के बाद के पांच वर्षों के दौरान देश में बिजली की स्थिति पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि इस दौरान पीक आवर डिमांड (24 घंटे में किसी एक समय बिजली की अधिकतम मांग) में 24 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। पीक आवर डिमांड इस अवधि में 1.64 लाख मेगावाट से बढ़कर दो लाख मेगावाट हो चुका है। लेकिन इस दौरान देश में बिजली का उत्पादन 1308 अरब यूनिट से बढ़कर सिर्फ 1320 अरब यूनिट हुआ है।


असलियत में 2014-15 के बाद से सालाना स्तर पर बिजली उत्पादन की दर लगातार घटती रही है। उस वर्ष बिजली उत्पादन में 8.84 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, वर्ष 2018-19 में उत्पादन में 5.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्ष 2019-20 में यह वृद्धि दर घटकर सिर्फ 0.95 प्रतिशत रह गई। इसके बाद के वर्ष 2020-21 में तो 2.49 प्रतिशत की गिरावट हुई (मुख्य वजह कोरोना महामारी की वजह से आर्थिक बंदी)।

वर्ष 2021-22 के दौरान बिजली उत्पादन 6.9 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1320 अरब यूनिट हुआ है। चिंता की बात यह है कि कोयला आपूर्ति बढ़ाने के बावजूद बिजली उत्पादन पिछले तीन महीनों से 1320 अरब यूनिट के आसपास बना हुआ है। ऐसे में अगर मई, 2022 में बिजली की मांग में ज्यादा उछाल आएगा तो स्थिति बिगड़ सकती हैं।

बिजली उत्पादन में खास वृद्धि नहीं होने के पीछे एक और बड़ा कारण कोयला और लिग्नाइट आधारित बिजली संयंत्रों का प्लांट लोड फैक्टर (किसी खास समय में संयंत्रों की तरफ से पैदा की जाने वाली अधिकतम बिजली) नहीं बढ़ना है।


मांग और आपूर्ति में अंतर


पिछले पांच वर्षों में यह 55.32 प्रतिशत से घटकर 53.05 प्रतिशत हो गया है। वर्ष 2021-22 के पहले दस महीनों में बिजली की मांग 2.03 लाख मेगावाट की थी जबकि आपूर्ति 2.0 लाख मेगावाट रही। हालांकि यह स्थिति वर्ष 2014-15 में मांग व आपूर्ति के अंतर 4.7 प्रतिशत से बेहतर है लेकिन वर्ष 2017-18 के बाद बिजली की मांग और आपूर्ति में 1.2 प्रतिशत से ज्यादा का अंतर नहीं रहा।


कोयला व गैस की कमी से 60 हजार मेगावाट के प्लांट हैं बंद


देश में अभी 60 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली प्लांट कोयला या गैस की कमी या दूसरी वजहों से बंद हैं। 18 हजार मेगावाट क्षमता के गैस आधारित बिजली प्लांट गैस उपलब्ध नहीं होने से बंद है जबकि आयातित कोयला पर आधारित 16 हजार मेगावाट क्षमता के संयंत्रों में भी नाममात्र का उत्पादन हो रहा है। इसके अलावा 15-16 हजार मेगावाट क्षमता के संयंत्र मरम्मत की वजह से काम नहीं कर रहे हैं। इसी तरह से 10 हजार मेगावाट क्षमता के संयंत्रों के पास पीपीए (पावर परचेज एग्रीमेंट) नहीं है।


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Gautam kr. Suraj

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