जातीय जनगणना क्या है? आइए जानते हैं जातीय जनगणना के बारे में
जातीय जनगणना सीधा-सीधा कहे तो जाति के आधार पर आबादी की गिनती को जातीय जनगणना कहते हैं।
किसी तबके की कितनी हिस्सेदारी है,
कौन वंचित रहा,
जातीय जनगणना से हर बात का पता चलता है। जातियों की उपजाति का भी पता चलता है। उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति का भी पता चलता है।
जातीय जनगणना क्यों नहीं हो पाती है। इसके बारे में थोड़ा जानते हैं।
विपक्ष में रहने पर दल इसका समर्थन करते हैं, लेकिन सरकार में आने पर आनाकानी करने लगते हैं। सत्ताधारी दल को लगता है कि जातीय जनगणना के आधार पर लोगों को गिनना समाज में जातीय गुटबाजी बढ़ जाएगी और समाज भी बट जाएगा।
जातीय विभाजन का सीधा फायदा क्षेत्रीय दलों को मिलेगा।
समर्थन करने वाले कहते हैं कि जातीय पिछड़ेपन का पता चल सकेगा। आंकड़ा पता चलाने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का फायदा देकर उन्हें मजबूत बनाया जा सकता है। जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का पता चलाया जा सकता है। इससे योजनाएं बनाने में आसानी होती है।
देखिए जातीय जनगणना के फायदे हैं तो इसके नुकसान भी हैं। अब क्या नुकसान है, इसके बारे में जानते हैं।
ब्रिटिश सरकार और आजाद भारत की सरकारें भी इस मांग को टालती रही है। माना जाता है कि जिस समाज में आबादी घट रही होती है उस समाज के लोग परिवार नियोजन से दूरी अपना सकते हैं। सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने का खतरा भी रहता है और साल 9151
के गृह मंत्री सरदार पटेल ने भी इसके प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
जातीय जनगणना से क्यों डरती है? सरकार
कारण यह है कि अगर किसी भी जाति की संख्या बढ़ती है तो वह सरकार में अपनी बढ़ी हुई हिस्सेदारी की मांग करेगा। हर जनगणना में आदिवासी और दलित की गिनती होती है। लेकिन अगर जातिगत जनगणना हुई तो ओबीसी और जनरल वर्ग भी गिने जाएंगे और अगर इनकी आबादी बढ़ी तो एससी एसटी ओबीसी आरक्षण पर नई तकरार मच सकती है।
क्षेत्रीय पार्टी क्या कहती है इसके बारे में यह भी जानते हैं। कुछ पार्टियां तो इसके समर्थन में हैं और कुछ पार्टी विरोध भी कर रहे हैं। वह कहते हैं कि सरकार ओबीसी की संख्या बताएं और फिर आरक्षण सीमा को बढ़ाएं। इन दलों का वोट बैंक ओबीसी सी है।
भारत में आखिरी बार जातिगत जनगणना ब्रिटिश सरकार के दौरान 1931 में हुई थी और उसके बाद 1941 में भी हुई थी। लेकिन आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। अगली जनगणना 1951 में। हुई जब देश आजाद हो चुका था तब सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया था। तब से जनगणना का 1951 वाला पैमाना ही चल रहा है।
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