जगी वासुदेव से कैसे बन गए सदगुरु,जानिए क्या कहते हैं वे खुद ,jaggi vasudev how become sadguru?

जगी वासुदेव कैसे बने सदगुरू, ये पहली घटना ने बदल दी थी जिंदगी।

सद गुरु कहते हैं मैं चामुंडी पर्वत पर जाकर बैठा जो उस शहर में एक दिन दोपहर में मैं बस एक छोटी सी पहाड़ी पर जाकर बैठा जो उस शहर में है जहां में बड़ा हुआ था। कुछ पल तक मैंने हमेशा यही सोचा था। यह मैं हूं और वह कोई और है। मुझे किसी और से कोई परेशानी नहीं थी, पर वह कोई और है। यह मैं हूं। पहली बार मैं यह नहीं जानता था कि मैं क्या हूं और क्या नहीं हूं। मैं जो था वह हर जगह फैला हुआ था। मुझे लगा यह पागलपन 5-10 मिनट तक चला। लेकिन जब मैं अपने होने के सामान्य तरीके पर वापस आया। अब साडे 4 घंटे बीत चुके थे। मैं वहीं बैठा था। पूरी तरह से चेतन आंखें खुली। मैं वहां दिन में करीब 3:00 बजे बैठा था और शाम के 7:30 बज चुका था और मुझे लगा बस 10 मिनट हुए हैं पर सारे 4 घंटे बीत गए थे। मेरे व्यस्त जीवन में पहली बार इतने आंसू बह रहे थे कि मेरी शर्ट पूरी गीली थी। मुझे आंसू आना संभव था। वैसा था। मैं हमेशा खुश रहा हूं। यह मेरे लिए कभी मुद्दा नहीं रहा। मैं अपने काम में सफलता में युवा था और कोई परेशानी नहीं थी। मैं खुश था पर मुझ में एक अलग तरह के परम आनंद का विस्फोट हो रहा था। वर्णन से परे है मेरे शरीर की हर कोशिका परम आनंद से सराबोर थी। मेरे पास कोई शब्द नहीं थे। 

       जब मैंने अपना सिर हिलाया और अपने शक्की दिमाग से पूछने की कोशिश की कि मुझे हो क्या रहा है? तो मेरा दिमाग मुझे सिर्फ एक बात बता पाया कि मैं कुछ बहुत अजीब कर रहा हूं। मुझे इसकी परवाह नहीं थी कि वह क्या था लेकिन मैं उसे खोना नहीं चाहता था क्योंकि इससे खूबसूरत चीज मुझे कभी नहीं मिली थी और मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक इंसान अपने अंदर ऐसा महसूस कर सकता है तो जब मैं अपने सबसे करीबी दोस्तों के पास गया और बताया कि मेरे साथ कुछ ऐसा हो रहा है। बातें करते करते मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं और लोग कहते हैं। क्या तुमने कुछ किया था, कुछ खाया था, तुमने क्या किया था। मुझे पता था कि किसी को कुछ कहने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि अगर मैं बस आसमान को देखता हूं तो आंसू आ जाते। तारे को देखता तो आंसू आ जाते हैं। आंखें बंद करता तो आंसू आ जाते हैं। मैं बस सराबोर था। छह महीनों में मेरी हर चीज जबरदस्त तरीके से बदल गई और मैंने समय का सुध खो दिया। जब यह अगली बार हुआ तब बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि मेरे आस-पास लोग थे। मैं अपने परिवार के साथ बैठा था। खाने की टेबल पर मुझे वाकई लगा दो मिनट हुए हैं पर 7 घंटे बीत है। मैं वहीं बैठा रहा हूं। 

पर मुझ में समय का कोई बोझ नहीं था

       यह कोई 1 दिन बस अपने खेत में बैठा था और मुझे लगा कि मैं 25 30 मिनट के लिए बैठा लेकिन मैं 13 दिन तक बैठा था। तब तक भीड़ जमा हो गई। भारत ऐसा देश है कि मेरे आस-पास बड़ी-बड़ी मालाएं थी। कोई पूछ रहा है कि उसका कारोबार कैसे चलाएं। कोई पूछ रहा है कि उसकी बेटी की शादी कब होगी। सारी बकवास जिससे मुझे नफरत थी। मेरे आस-पास हो रही थी और मुझे वाकई लगा 25 30 मिनट हुए थे और वह लोग कह रहे थे। 13 दिन से यह बैठा है। यह समाधि में यह है वह है। मैंने यह शब्द भी नहीं सुने थे मैं यूरोपियन फिलॉसफी पढ़कर बड़ा हुआ था। काम होगा आपका दोस्त और कि आप उन्हें पढ़ते अमेरिका में और साठ का दशक था तो मैं बीटल्स वगैरह को सुनते हुए बड़ा हुआ था। मैं और आध्यात्म अलग अलग दुनिया आए थे। मेरे वहां जाने का कोई सवाल ही नहीं था तो मेरे अंदर यह सब नहीं थे, समाधि है और वह लोग कह रहे थे। अरे वह इस तरह के समाधि में है। वह उस तरह की समाधि में आप उन्हें छू लेंगे तो यह होगा। आप लोग मुझे पकड़ना चाहते थे तो मैं बस यही कर सकता था। मैंने वह जगह छोड़ी और सफर पर निकल गया। सिर्फ इससे बचने के लिए क्योंकि मैं समझ नहीं रहा था की मेरे आस-पास क्या हो रहा है, 

       मैं आपको यह कहानी इसलिए बता रहा हूं क्योंकि हर इंसान के लिए संभव है मेरी कामना और मेरा आशीर्वाद है। यह आपके साथ होना चाहिए। चाहे आप माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने या ना चढ़े धरती के सबसे अमीर आदमी बने या ना बने। इस धरती पर आपके जीवन का अनुभव अच्छा होना चाहिए। आपको आनंद में जी कर जाना चाहिए। यह हर इंसान के साथ होना चाहिए। हर कोई इसका अधिकारी है और हर किसी में यह काफी है।

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Gautam kr. Suraj

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